V.S Awasthi

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पथरा गई हैं आंखें

पथरा गई हैं आंखें
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पथरा गई हैं आंखें इसके इन्तजार में।
अश्रु भी भरे हैं इस पल की तलाश में।।
अभी मैंने जी भर के देखा नहीं है। कैसा है मुखड़ा ये सोंचा नहीं है।।
छुआ भी नहीं है अपने कोमल करों से।
और प्यार उसको किया भी नहीं है।।
अभी मां वो कहकर बुलायेगा मुझको।
फिर चूमूंगी मैं उसके कोमल से मुख को।।
लगाऊंगी मैं अपने हृदय से फिर उसको।
कराऊंगी मैं अपना अमृतपान उसको।।
हैं वादा मेरा मैं चलूं साथ तेरे।
लिटा दो मेरे लाल को पास मेरे।।
सुला दूं मैं उसको एक लोरी सुनाकर।
वक्षस्थल में छुपा लूं मैं बेटा बुलाकर।।
हे ईश्वर करूं मैं बस तेरी बन्दी।
दे दे मुझे दो घड़ी ज़िन्दगी।।
गले मौत फिर मैं लगा लूं गीत तुझको।
बस एक बार बेटे से मिला दे तू मुझको ।।
बस अन्तिम यही है दुआ बन्दगी।
दो घड़ी बस ठहर जा मेरी ज़िन्दगी।।
रुकने लगी हैं मेरी बस अब सांसें।
पथरा गई हैं मेरी बस अब आंखें।।
विद्या शंकर अवस्थी पथिक कानपुर

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1 Comments

Rajeev kumar jha

31-Jan-2023 11:52 AM

Nice

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